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सरकारें आम जनता के प्रति जबाबदेय कम बल्कि वह उद्योगपतियों के प्रति अधिक जबाबदेय है

India 21st Century
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दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविन्‍द केजरीवाल ने जैसे ही रिलायंस और मंत्रियों पर मिलीभगत करके गैस का दाम बढ़ाने का आरोप लगाया, वैसे ही राजनीति और उद्योग जगत मे मानो भूचाल आ गया। कांग्रेस की केन्‍द्र सरकार के कई बड़े मंत्री जैसे विरप्‍पा मोईली, मुरली देवड़ा और रिलायंस इण्‍डस्‍टीज के मुखिया मुकेश अम्‍बानी पर एफआईआर दर्ज कराने की घटना आज के राजनीति मे एक बड़ा कदम माना जा रहा है। आजतक सरकारें जहॉ इन उद्योग घरानों के रहमों करम पर चलती थीं, वहीं आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्‍द केजरीवाल ने देश के एक बड़े उद्योगपति के खिलाफ मोर्चा खोलकर यह साबित कर दिया कि आने वाले समय मे एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हो सकता है। इस प्रकार के आरोप कई बार इन बड़ी बड़ी कंपनीयों पर लग चुके है लेकिन सरकारें उनके खिलाफ कड़े कदम उठाने से बचती रहीं है। देश की लगभग सभी बड़ी पार्टीयॉ इन कंपनीयों से चन्‍दा वसूलती है, जिसके कारण सरकारें इनके प्रभाव मे आकर अपनी नीतियॉ निर्धारित करती है। इस पुरे मामले पर कैग ने भी सवाल उठाया है जिसमे कहा गया है कि आरआईएल ने पुजीं लागत को दो बार बढ़ाया जिससे लागत पुरी करने मे अधिक समय मिल सके, तथा एक कंपनी को फायदा पहॅुचाने के लिए एक टेंडर आने के बावजूद उसे काम दिया गया। मामला केवल अरविन्‍द केजरीवाल का नही है, इस मामले मे एसीबी को पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्‍यम, पूर्व नौसेना प्रमुख आरएच तहलियानी, प्रख्‍यात वकील कामीनी जायसवाल और पूर्व केन्‍द्रीय सचिव ईएएस सरमा ने भी शिकायत की है।
सवाल यह है कि जब 10-16 जून की प्रोडक्‍शन रिपोर्ट मे यह कहा गया है कि 18 मे से केवल 9 कॅुओं से उत्‍पादन हो रहा था, गैस की विक्री सिर्फ 18 फीसद थी, ऐसे मे मंत्रालय को आरआईएल का लाईसेन्‍स रदृद कर देना चाहिए बावजूद इसके मुल्‍यों मे बढ़ोत्‍तरी कर आम आदमी पर बोझ बढ़ा दिया गया। एक बार तो मामला उठा था कि ये उद्योग समूह अपने सुविधा के हिसाब से मंत्रियों का नियुक्ति एवं उनका स्‍थानान्‍तरण करवाते है, इससे आसानी से समझा जा सकता है कि सरकारें आम आदमी नही बल्कि इस देश का उद्योगपति चुनता है। सरकारें आम जनता के प्रति जबाबदेय कम बल्कि वह इन उद्योगपतियों के प्रति अधिक जबाबदेय है। वैसे आप के मुखिया अरविन्‍द केजरीवाल ने रिलायंस के खिलाफ हल्‍ला बोलकर एक नई बहस की शुरूआत तो कर ही दी है। फिक्‍की के अध्‍यक्ष सिद्धार्थ विडला ने भी सरकार को पारदर्शी बनाने की बात कही है। 17 बर्ष पूर्व रिलायंस ने 2.3 डालर प्रति यूनिट पर गैस देने का करार किया था लेकिन बर्ष 2000 मे केन्‍द्र सरकार के हस्‍तक्षेप से 4.24 डालर प्रति यूनिट करा लिया। यहॉ यह भी सवाल भी उठता है कि जब 2.3 डालर प्रति यूनिट बंग्‍लादेश को उसी कुऍ से सप्‍लाई मिल रही है तो रिलायंस को क्‍यों नही ।
गैस की कीमत बढ़ने के कारण बाजार पर भी बहुत ही गहरा असर पड़ेगा, महेगाई काफी हद बढ़ जायेगी। टान्‍सपोर्ट महंगा होगा जिससे दवाईयॉ, खाद्द पदार्थ एवं अन्‍य जरूरती सामान के दामों मे भी बढ़ोत्‍तरी होना तय है। ऐसे मे एक बार फिर आम आदमी के उपर महेगाई का बोझ लाद दिया जायेगा और उन गैस कंपनीयों का मुनाफा पहले से कहीं अधिक हसे जायेगा जिसमे से कुछ हिस्‍सा अप्रत्‍यक्ष रूप से सरकारों और राजनीतिक पार्टीयों को दे दिया जायेगा। संविधान मे जिस मानव अधिकारों एवं कर्तव्‍यों का उल्‍लेख किया गया है आज वह कहीं न कहीं इन पार्टीयों एवं औद्दोगिक घरानों की कठपुतली बन कर रह गया है। आखिर किस आधार पर समानता एवं न्‍याय की बात कही जाती है जबकि आम आदमी न्‍याय पाने के लिए दर दर भटक रहा है।

लेखक: सत्‍य प्रकाश

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