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अभी हाल ही संपन्न हुये हरियाणा और महाराष्ट के चुनावों में जहॉ भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी वहीं दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी चुनाव को लेकर असमंजस की सिथति में थी लेकिन उच्चतम न्यायालय के कड़े रूख के कारण भाजपा के कैबिनेट ने दिल्ली में चुनाव को हरी झंडी दे दी । भाजपा को इस समय मोदी के जादू पर भरोसा करने के अलावा कुछ बचा नही है, भाजपा पुरी तरह से मोदी के उपर आश्रित हो चुकी है या यह कहें कि भाजपा का मतलब ही मोदी हो चुका है । नरेन्द्र मोदी जी ने भी दुसरे नेताओं की तरह ही लोकसभा चुनाव में खुब लुभावने वादे किये लेकिन जब उन्हे सत्ता मिल गई तो वे गोल मटोल जबाब देना शुरू कर दिये । आज भी भारत की जनता भ्रष्टाचार, महंगाई, कमजोर शिक्षा व्यवस्था, बिजली, पानी, सड़क, संचार, स्वास्थ्य, रोजगार आदि समस्याओं से उसी प्रकार जुझ रही है जैसे वह कांग्रेस के शासनकाल में जुझ रही थी ।
आज भी हमारे नीतियॉ, कानुन वहीं है जो कांग्रेस के शासनकाल में थीं, आज भी सरकारी विभागों में, दफतरों में बिना रिश्वत के कोई काम नही होता है । क्या नरेन्द्र मोदी की सरकार ने किसी भी भ्रष्टाचारी के उपर जॉच करके कोई कार्यवाही की । इन सबके बावजूद उनका प्रयास अच्छा है लेकिन अभी बहुत कुछ काम करने की आवश्यकता है, ब्रॉडबैण्ड हाईवे, स्वच्छता अभियान, मेक इन इंण्डिया, डिजिटल इंण्डिया आदि जैसे कार्य सराहनीय है लेकिन हमें पर्यावरण की अनदेखी कर विकास नही करना चाहिये ।
अब बारी दिल्ली की है अरविन्द केजरीवाल ने भी दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में वही लुभावाने वादे किये जो दुसरे दल के राजनेता करते है लेकिन जब सता मिली तो वह भी उसे पुरा करने में नाकाम साबित हुये जिसका परिणाम रहा कि उन्हे सत्ता छोड़नी पड़ी । लेकिन क्या इस बार का दिल्ली चुनाव व्यक्ति आधारित होगा या फिर मुद्दों के आधार पर लड़ा जायेगा । अरविन्द केजरीवाल की टीम मे भी दरारे पड़ चुकी है, उनके कई साथी छोड़ चुके है, अाम आदमी पार्टी मे भी दुसरी पार्टीयों की तरह से आपसी षड़यंत्र किया जाता है । आम आदमी पार्टी किसी भी तरह से दुसरे पार्टीयों से भिन्न नही है । इनके पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह उत्तर प्रदेश में जाति और धर्म की राजनीति करते दिखाई देते है और उनका काय्रकर्ताओं में जबरजस्त विरोध भी है । इसलिये आम आदमी पार्टी से भी उम्मीद रखना बेमानी ही साबित होगी ।
वैसे दिल्ली का चुनाव भाजपा बनाम आम आदमी पाटी ही होने वाला है क्याेिकि यहॉ अब कांग्रेस कहीं दिखती नही है । लेकिन सवाल समस्याओं और मुददों का है, क्या व्यक्तिवाद के चक्कर में मुद्दे हासिये पर चलें जायेगें । यह तो समय ही बतायेगा कि राजनीति कौन सी करवट बैठेगी ।
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